जूनियर आर्टिस्ट में कई लोग ऐसे होते हैं जो खुद को बड़े पर्दे पर देखना चाहते हैं l लेकिन जब ये ख्वाब पूरा नहीं होता तो घर चलाने के लिए जूनियर आर्टिस्ट बनना पड़ता है l लेकिन कई बार आर्थिक तंगहाली के कारण भी कुछ लोग जूनियर आर्टिस्ट बन जाते हैं l
नसीरुद्दीन शाह, नवाजुद्दीन सिद्दीकी से लेकर मानव कौल, दिया मिर्जा तक कई प्रतिभावान कलाकारों ने बतौर जूनियर आर्टिस्ट अपने करियर की शुरुआत की थी l नसीरुद्दीन शाह ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा भी था कि 15-16 साल की उम्र में उन्होंने श्याम बेनेगल की फिल्म निशांत में एक्स्ट्रा का काम किया था l 30-40 साल पहले भीड़ का हिस्सा बनने वाले इन लोगों को महज ‘एक्स्ट्रा’ कहा जाता था, लेकिन आज के दौर में उन्हें ‘जूनियर आर्टिस्ट’ नाम देते हुए सम्मान देने की कोशिश की जाती है l आखिर कैसी होती हैं इन जूनियर आर्टिस्ट की जिंदगी ये जानने के लिए हमने इंडस्ट्री के कुछ जूनियर आर्टिस्ट से बात करने की कोशिश की, जिनकी कहानी बिल्कुल अलग है l

जूनियर कलाकारों की दुनिया आम अभिनेताओं की तरह उतनी चकाचौंध भरी नहीं होती है l यहां कोई दिखावा या राजनीतिक शुद्धता का प्रयास नहीं होता l जब कोई जूनियर आर्टिस्ट एसोसिएशन में आवेदन करता है तो उसे उम्र और दिखावट के आधार पर एक कार्ड और एक श्रेणी दी जाती है l यह श्रेणी जिसे डीसेंट भी कहा जाता है वह उन लोगों की होती है जो पारंपरिक रूप से अच्छे दिखने वाले माने जाते हैं और मापदंडों में फिट बैठते हैं जैसे युवा, गोरे, लंबे, शारीरिक रूप से फिट और अमीर दिख सकते हैं l ऐसे लोगों को उन दृश्यों के लिए आरक्षित रखा जाता है जहां उन्हें ऐसे लोगों की जरूरत होती है जो किसी बड़े पोस्ट, कॉरपोरेट ऑफिस में बैठे या एक शानदार कार चलाएं या फिर मुख्य अभिनेता के पीछे खड़े हो जो देखने में अच्छा और अमीर लगे l डीसेंट श्रेणी के लोगों को बाकी लोगों की तुलना में 20% से 25% ज्यादा भुगतान भी मिलता है l फिर आपके पास B श्रेणी है, यह गुंडे, मोर्चा वाले, गांव वाले या अंतिम संस्कार की दृश्य के लिए होते हैं l सबसे निचले पायदान पर टॉक शो श्रेणी है l इन लोगों को टीवी टॉक शो के लिए सीट भरनी होती है l उन्हें घंटे स्टूडियो में बंद रखा जाता है l उन्हें शौचालय जाने की अनुमति तक नहीं होती और उन्हें बहुत कम पैसे दिए जाते हैं l सभी श्रेणियों के कलाकारों को इस दुनिया में अपनी जगह के बारे में अच्छी समझ है और उन्हें दिखावे के आधार पर भेदभाव किए जाने में कोई हिचक नहीं होती l
जूनियर आर्टिस्ट की है एक अलग दुनिया
यह सच है कि चाहे बड़े बजट की फिल्म हो या कम बजट की बिना जूनियर आर्टिस्ट के फिल्म अधूरी ही रहती है l आज के दौर में जूनियर आर्टिस्ट की दशा काफी जद्दोजहद वाली है l काफी मुश्किलों का सामना करने के बाद चंद पैसे उनके हाथों में आते हैं l

अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर एक महिला जूनियर आर्टिस्ट ने वीकली आई को बताया कि “पिछले 8 साल से हमारा पेमेंट नहीं बढ़ा है l दिखने में तो रोज़ के हिसाब से पैसे ज्यादा लगते हैं, लेकिन ये काम रोज नहीं मिलता l महंगाई बढ़ रही है, इन पैसों में हमें ट्रैवलिंग के पैसे भी लगाने होते हैं और साथ में खुद का मेकअप भी लेकर आना होता है l कपड़े भी हम साथ में लेकर आते हैं l बड़े आर्टिस्ट को कपड़े कंपनी देती है, लेकिन हमें सब कुछ खुद से ही जोड़ना होता है l उम्मीद है इस पर यूनियन जल्द कोई फैसला ले” l
कोरोना काल से मुश्किलें और बढ़ी
कोरोना से लड़ाई के बीच सूने पड़े बॉलीवुड में हलचल तो शुरू हो गई थी मगर स्थिति पूरी तरह वैसी नहीं बनी जैसी कोरोना के आने से पहले थी। फिल्म, टीवी के धारावाहिक, ऐड फिल्म्स, वेब सिरीज और रियलिटी शो की शूटिंग शुरू तो हुई मगर वो गरीब और जूनियर आर्टिस्ट, जो इस इंडस्ट्री से जुड़े हैं और रोज कमाते-खाते हैं वो अब तक परेशान हैं। कोरोना के समय की कहानी बयां करते हुए एक महिला जूनियर आर्टिस्ट लक्ष्मी गोस्वामी (जो अपनी समस्याओं को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटा चुकी है) ने बताया कि ’कोरोना काल का समय बहुत भयावह था l हमें मुश्किल से ही कुछ पैसे मिलते थे और थोड़े ही राशन की व्यवस्था होती थी जिसमें हमको अपना पूरा घर संभालना होता था, कुछ बड़े सितारे मदद करते थे वह भी 500 या 1000 कोई कोई 2000 से ₹3000 भी देते थे l राशन की समस्या से भी हम लोग को जूझना पड़ा l तो दूसरी तरफ कई बड़े सितारे वादा तो करते थे लेकिन निभाने नहीं थे l इसी वजह से हमारी आस हमारे ’जूनियर आर्टिस्ट एसोसिएशन’ की तरफ ज्यादा होता था लेकिन वहां से भी हमें कुछ खास मदद की प्राप्ति नहीं हुई थी l अब कोरोना का समय तो चला गया है लेकिन स्थिति अब भी ठीक नहीं है l जूनियर आर्टिस्ट एसोसिएशन के चेयरमैन पप्पू जी है, उनसे हम लोगों ने कई बार अपना रोजाना का भत्ता बढ़ाने की मांग करी लेकिन वह पूरी नहीं हुई l कई लोगों के केस भी अदालतों तक पहुंच चुके हैं लेकिन सिर्फ खोखले वादों और आश्वासनों के अलावा कुछ भी प्राप्त नहीं हो रहा है l यहां तक कि सेट पर भी जो खाना दिया जाता है वह भी दोयम दर्जे का खाना होता है जिसको खाकर आदमी बीमार तक पड़ जाता है l इस बात को भी हमने संगठन के सामने रखा लेकिन उनके कानों में जूं तक नहीं रेंगी l

इन जूनियर आर्टिस्ट की बातें सुनने के बाद जब हमने जूनियर आर्टिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष पप्पू से बात करने का प्रयास किया तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और बात को टाल गए l दोबारा प्रयास करने पर उन्होंने फोन ही नहीं उठाया l तो अब इन जूनियर आर्टिस्ट का भविष्य आखिर कैसा होगा? ना उनकी मदद इनका अपना यूनियन ही कर रहा है और ना कोई बड़े सितारे ही उनकी मदद को आगे आ रहे हैं l सब अपने-अपने चूल्हे पर अपनी अपनी रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं l
बिना ’पास’ वाले जूनियर आर्टिस्ट भी है अब इंडस्ट्री में
जूनियर आर्टिस्ट के लिए एक ’पास’ बनता है जो की 20000 से 25000 रुपए तक का होता है और जिसकी कोई लिखा पढ़ी नहीं होती है बस यह पैसे उनके संगठन में जमा करना होता है जिसके एवज में उनको एक ’पास’ बनकर दिया जाता है l इस पास के माध्यम से वह संगठन के और यूनियन के मेंबर हो जाते हैं और जहां भी उनकी जरूरत पड़ती है उनसे काम लिया जाता है l अब हालात कुछ ऐसे हो गए हैं कि बिना ’पास’ वाले इंडस्ट्री में बड़ी तादाद में एंट्री कर चुके हैं, जो ना तो यूनियन के मेंबर है ना ही संगठन से उनका कोई संबंध है l लेकिन जूनियर आर्टिस्ट के सप्लायर इनको ज्यादा से ज्यादा काम दे रहे हैं बजाय उनके जिनके पास सदस्यता है और जो यूनियन और संगठन के सदस्य हैं l अपनी छलकती हुई आंखों से एक महिला जूनियर आर्टिस्ट ने वीकली आई को बताया कि ’हम लोग 15 – 20 साल से फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं और उसके बावजूद भी हमारे पास काम की कमी हो गई है l अब बिना सदस्यता वाले लोग यहां एंट्री कर गए हैं जो कम पैसे लेते हैं, और सप्लायर उनको ही काम देना ज्यादा पसंद करते हैं जिससे हमारी आजीविका पर बहुत बड़ा संकट आ गया है’ l
सबसे बड़ी समस्या यह है कि आखिर यह जूनियर आर्टिस्ट जाए तो जाए कहां l ना ही इनके पास संसाधन है ना ही बड़े लोगों से और नेताओं से इनकी पहचान है और ना ही यह सरकार तक अपनी आवाज पहुंचने में सक्षम है l हालांकि हमारी फिल्म इंडस्ट्री को और हमारे सरकार को इस समस्या का निवारण जल्द से जल्द करना चाहिए l
