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उत्तराखंड के वसुधारा झील की सेंसर से होगी निगरानी, केदारताल का अध्ययन करने जाएगी वैज्ञानिकों की टीम

News Desk
Last updated: 2025/03/26 at 1:50 PM
News Desk
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7 Min Read
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 उत्तराखंड की उच्च हिमालय क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में ग्लेशियर मौजूद हैं, लेकिन ये ग्लेशियर कई बार लोगों के लिए भी एक बड़ी समस्या भी बन जाते हैं. ग्लेशियर में बनने वाले ग्लेशियर झील नीचे रह रहे लोगों के लिए काफी खतरनाक साबित होती रही है. जिसको देखते हुए भारत सरकार की ओर से प्रदेश के पांच ग्लेशियर झीलों को चिन्हित कर अतिसंवेदनशील बताया गया है. जिनकी निगरानी के लिए निर्देश दिए गए हैं. ऐसे में पिछले साल आपदा विभाग की ओर से वसुधारा झील का अध्ययन कराया गया था. ऐसे में अब आपदा विभाग वसुधारा झील पर अध्ययन के बाद सेंसर के जरिए अध्ययन करने पर जोर दे रही है.

उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर झीलों में 5 झील अति संवेदनशील: बता दें कि भारत सरकार की एनडीएमए यानी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने संवेदनशील ग्लेशियर झीलों की सूची जारी की थी. जिसमें उत्तराखंड में मौजूद 13 ग्लेशियर झीलों को संवेदनशील और अतिसंवेदनशील बताया गया है. इन झीलों को संवेदनशीलता के आधार पर 3 कैटेगरी में रखा है.

A कैटेगरी में अति संवेदनशील 5 ग्लेशियर झील को रखा गया है, जिसमें से 4 ग्लेशियर झील पिथौरागढ़ और 1 ग्लेशियर झील चमोली जिले में मौजूद है. इसके साथ ही थोड़ा कम संवेदनशील वाले 4 झीलों (चमोली 1, टिहरी 1 और पिथौरागढ़ 2) को B कैटेगरी और कम संवेदनशील 4 झीलों (उत्तरकाशी, चमोली और टिहरी) को C कैटेगरी में रखा गया है.

एनडीएमए की ओर से सूची जारी होने के बाद उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग ने इसकी निगरानी का निर्णय लिया था. साथ ही साल 2024 में आपदा विभाग ने विशेषज्ञों की टीम गठित कर वसुधारा ग्लेशियर झील के अध्ययन करवाया था. अध्ययन में बाद अब आपदा विभाग ने वसुधारा ग्लेशियर झील में सेंसर लगाकर अध्ययन करने का निर्णय लिया है.

ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड से मच चुकी है तबाही: उत्तराखंड राज्य में पिछले 10 से 15 सालों के भीतर दो बड़ी घटनाएं हुई है, जो ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) यानी ग्लेशियर झील फटने की वजह से हुई थी. साल 2013 में केदार घाटी से ऊपर मौजूद चौराबाड़ी ग्लेशियर झील की दीवार टूटने की वजह से एक बड़ी आपदा आई थी. उस दौरान करीब 6 हजार लोगों की मौत हुई थी.

इसके अलावा फरवरी 2021 में चमोली जिले में नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने की वजह से धौलीगंगा में बड़ी तबाही मच गई थी. यही वजह है कि ग्लेशियर झीलों को भविष्य के लिहाज से काफी खतरनाक माना जा रहा है. जिसके चलते ग्लेशियर में मौजूद झीलों की लगातार निगरानी करने की जरूरत है.

वसुधारा ग्लेशियर लेक का बढ़ रहा आकार: दरअसल, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक पहले ही वसुधारा ग्लेशियर झील का अध्ययन कर चुके हैं. जिसके अनुसार, वसुधारा ग्लेशियर झील का आकार लगातार बढ़ता जा रहा है. वाडिया से मिली जानकारी के अनुसार, साल 1968 में वसुधारा ग्लेशियर लेक का आकार 0.14 वर्ग किलोमीटर था. जो साल 2021 में बढ़कर 0.59 वर्ग किलोमीटर हो गया था.

यानी इन 53 सालों में वसुधारा ग्लेशियर झील की साइज में करीब 421.42 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. इसी क्रम में वसुधारा ग्लेशियर झील में एकत्र पानी की मात्रा भी लगातार बढ़ती जा रही है. वाडिया संस्थान के अनुसार, साल 1968 में वसुधारा ग्लेशियर झील में करीब 21,10,000 क्यूब मीटर पानी था, जो साल 2021 में बढ़कर करीब 1,62,00,000 क्यूब मीटर हो गया.

20 करोड़ रुपए की धनराशि में वसुधारा ग्लेशियर झील में लगाया जाएगा सेंसर: उत्तराखंड आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि भारत सरकार की एनडीएमए की ओर से पांच झीलों को चिन्हित किया गया है, जो खतरनाक नहीं है, लेकिन उसकी निगरानी करने की जरूरत है. जिसके चलते आपदा विभाग की टीम वसुधारा ग्लेशियर झील की स्टडी करके आ गई है.

ऐसे में वसुधारा ग्लेशियर झील में जो सेंसर लगाया जाना है, उसका प्रस्ताव तैयार कर भारत सरकार को भेजा गया है. ऐसे में उम्मीद है कि सेंसर लगाए जाने के लिए जल्द ही धनराशि मिल जाएगी. बता दें कि आपदा प्रबंधन विभाग की ओर वसुधारा ग्लेशियर झील में सेंसर लगाए जाने के लिए करीब 20 करोड़ रुपए धनराशि का प्रस्ताव भेजा गया है.

पिथौरागढ़ के चार ग्लेशियर झीलों की निगरानी के लिए बरसात के बाद भेजी जाएगी टीम: आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि वसुधारा ग्लेशियर झील के अलावा जो अन्य चार ग्लेशियर झील संवेदनशील हैं, उसके अध्ययन के लिए विशेषज्ञों की टीम इसी साल भेजी जाएगी. इसके लिए आपदा विभाग अभी एक्सपर्ट्स की राय ले रहा है कि किस समय टीम को अध्ययन के लिए भेजा जाए. ताकि टीम आसानी से ग्लेशियर झीलों की स्टडी कर सके.

ऐसे में अगर जून महीने में जाने की राय एक्सपर्ट्स देते हैं तो जून में टीम भेजी जाएगी, नहीं तो फिर बरसात के बाद सितंबर-अक्टूबर महीने में टीम भेजी जाएगी. क्योंकि, इन महीनों में झील में पानी की मात्रा काफी ज्यादा होती है. ऐसे में अध्ययन करना ज्यादा बेहतर होगा. क्योंकि, इस दौरान झील की वास्तविक जानकारी मिल सकेगी.

गंगोत्री स्थित केदारताल का अध्ययन करने जाएगी वैज्ञानिकों की टीम: आपदा प्रबंधन विभाग ने गंगोत्री के पास मौजूद केदारताल झील का भी अध्ययन करने का निर्णय लिया है. केदारताल झील का अध्ययन करने के लिए टीम का वहां पहुंचना काफी मुश्किल है. जिसको देखते हुए एक्सपर्ट्स की राय ली जा रही है कि किस तरह से केदारताल झील का अध्ययन के लिए टीम को भेजा जा सकता है?

हालांकि, इस झील का अध्ययन के लिए एयरफोर्स या फिर उत्तराखंड नागरिक उड्डयन विभाग की मदद लेनी पड़ सकती है, जिस पर विचार चल रहा है. आपदा प्रबंधन सचिव ने बताया कि केदारताल अभी निर्मल श्रेणी में है, लेकिन ये झील गंगोत्री मंदिर के समीप है, ऐसे में धाम में आने वाले श्रद्धालुओं और वहां की आबादी को देखते हुए अध्ययन करने का निर्णय लिया है. ताकि, इस झील से भविष्य में होने वाले खतरे की जानकारी का पता लगाया जा सके.

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