* इलाहाबाद हाईकोर्ट का यूपी सरकार को निर्देश
कोर्ट ने कहा, जाति का उल्लेख नैतिकता विरुद्ध
डीजीपी को तुरंत प्रोफार्मा बदलने को कहा
वीकली आई न्यूज़, अभयानंद शुक्ल राजनीतिक विश्लेषक
लखनऊ/प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को एक बड़ा और दूरगामी असर वाला एतिहासिक निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि पुलिस रिकॉर्ड और प्रथम सूचना रिपोर्ट में जाति का उल्लेख तत्काल समाप्त कर दें , क्योंकि ये संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ है। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने यूपी सरकार को प्रथम सूचना रिपोर्ट के प्रोफार्मा में बदलाव का निर्देश भी दिया है। कोर्ट ने जातीय महिमा मंडन पर भी कड़ी आपत्ति जताई है।कोर्ट ने इस संदर्भ में सार्वजनिक साइनबोर्ड से भी जातिगत संदर्भ हटाने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट का मानना है कि ऐसे जातिगत महिमामंडन राष्ट्र-विरोधी हैं।हाईकोर्ट ने शराब तस्करी से जुड़े एक आपराधिक मामले को रद्द करने की याचिका खारिज करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को एक ऐतिहासिक निर्देश जारी किया है। कोर्ट ने पुलिस रिकॉर्ड, जैसे कि एफआईआर और ज़ब्ती मेमो में अभियुक्त की जाति के उल्लेख की प्रथा को तत्काल समाप्त करने को कहा है। न्यायमूर्ति ने विस्तृत फैसले में इस प्रथा को “कानूनी भ्रांति” और “पहचान की प्रोफाइलिंग” बताया है, जो संवैधानिक नैतिकता को कमजोर करती है। कोर्ट ने इसे भारत के संवैधानिक लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती भी बताया है। कोर्ट ने बीते 16 सितंबर को ये आदेश दिया।हाईकोर्ट ने इस महत्वपूर्ण फैसले में उत्तर प्रदेश सरकार को अपनी पुलिस दस्तावेज़ी प्रक्रियाओं में व्यापक बदलाव करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान प्रवीण छेत्री नामक व्यक्ति की उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपने खिलाफ शराब तस्करी केस में आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी। लेकिन कोर्ट ने एफआईआर और ज़ब्ती मेमो में अभियुक्त की जाति का उल्लेख करने पर कड़ी आपत्ति जताई।हाईकोर्ट के फैसले में इस प्रथा के लिए पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) द्वारा दिए गए तर्कों की भी भारी आलोचना की गई है और जाति-आधारित पहचान से होने वाले मनोवैज्ञानिक और सामाजिक नुकसान पर दूरगामी टिप्पणियां की गई हैं।
