- दस लाख से अधिक दीपों को जलाने का है इंतजाम
- यूपी पर्यटन और काशी महोत्सव समिति करेंगे तैयारी
- शंखनाद और डमरू के नाद से शुरू किया जाएगा समारोह
अभयानंद शुक्ल,वीकली आई न्यूज़
लखनऊ। भारत की सांस्कृतिक राजधानी और भगवान भोले की नगरी काशी में इस वर्ष भी देव दीपावली भव्य तरीके से समारोह पूर्वक मनाई जाएगी। इस अवसर पर दस लाख दीप जलाने की तैयारी है। इसके लिए उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग और काशी महोत्सव समिति को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस मौके पर काशी के समस्त घाट, तालाब के किनारे और कुंडों को जगमग किया जाएगा। कुछ लेजर शो की भी तैयारी है।
वाराणसी में इस साल भी देव दीपावली पर लाखों दीपों और भक्ति की रौशनी दिखेगी। गंगा घाटों से लेकर तालाबों और कुंडों तक 10 लाख से अधिक मिट्टी के दीप जलाए जाएंगे। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग के साथ वाराणसी महोत्सव समिति ने भव्य आयोजन की तैयारियां शुरू कर दी हैं। दीप, तेल और बाती वितरण पहले ही राजघाट से शुरू हो चुका है। देव दीपावली पर्व का शुभारंभ शंखनाद और डमरू की आवाज से होगा। ये पर्व शिवनगरी की दिव्यता और ऊर्जा का प्रतीक बनेगा।
इस मौके पर ‘काशी-कथा’ नामक 3डी शो का भी प्रदर्शन किया जाएगा। इसके अलावा 25 मिनट का विशेष प्रोजेक्शन मैपिंग और लेजर शो होगा। इस मौके पर शिव पार्वती विवाह, भगवान विष्णु के चक्र पुष्करिणी कुंड की कथा, भगवान बुद्ध के धर्मोपदेश, संत कबीर और तुलसी की भक्ति परंपरा, आधुनिक काशी, बीएचयू की गौरवशाली यात्रा का प्रदर्शन किया जाएगा।
जानकारी के अनुसार ये शो रात 8:15, 9:00 और 9:35 बजे, तीन चरणों में होंगे ताकि सभी दर्शक इसका आनंद ले सकें। इसके अलावा गंगा द्वार के सामने रात 8:00 बजे 10 मिनट ग्रीन आतिशबाजी का भी प्रोग्राम है। इसका उद्देश्य काशी की विरासत को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करना है।
यहां के लोग बताते हैं कि देव दीपावली केवल रोशनी का पर्व नहीं, बल्कि काशी के इतिहास, संस्कृति और अध्यात्म की गाथा भी है। पर्यटन विभाग का उद्देश्य है कि आयोजन देशी और विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने और दुनिया को काशी की अनंत, अमर और अद्वितीय विरासत दिखाई जा सके।
इस साल बनारस में देव दीपावली 5 नवंबर को मनाई जाएगी। यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है। पर्व की मुख्य तिथि 5 नवंबर 2025 है। इस दिन गंगा नदी में स्नान और दीपदान का विशेष महत्व है।
काशी की देव दीपावली पर्व का पौराणिक महत्व
देव दीपावली भगवान शिव द्वारा राक्षस त्रिपुरासुर के वध की खुशी मनाने के लिए मनाई जाती है। इस दिन देवताओं को उसकी क्रूरता से मुक्ति मिली थी। इस अवसर पर देवताओं ने पहले स्वर्ग में और उसके बाद शिव नगरी में गंगा के किनारे दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। इसीलिए इस पर्व का नाम देव दीपावली पड़ा। यह पर्व ज्ञान व आध्यात्मिकता का उत्सव है। इस दिन पवित्र नदियों के किनारे या शिव मंदिरों में दीप जलाना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इस दिन दीपक जलाकर भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन देवता ही स्वर्ग से धरती पर आते हैं, और इन दीपों के प्रकाश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
