सरकार मंचों से सभाओं में कितना भी भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश का दावा करती रहे मुखिया के चहेते नौकरशाह ही खुलेआम सरकार के दावों की हवा निकालने में लगे है. मुख्यमंत्री के विभागों के मुखिया, अधिकतर इसी परिपाटी पर काम कर रहें हैं फिर भी भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड का दावा व नारा अपने आप में बेईमानी की जीती जागती मिसाल सा साबित होता जा रहा है.


प्रबंध निदेशक महोदय कमाल करते हुए शासन आदेश को मजाक बना, शासन इ. संजय सिंह द्वारा रखे गए उसके पक्ष पर अपनी रिपोर्ट बना शासन को भेज देंगे | इस कथन से स्पष्ट है कि बिना तथ्यों की जांच किए साक्ष्य सहित आरोपो को दरकिनार कर षड्यंत्रकारी नीति के तहत साजिशन खुले आम अभियंता को बिंदु बार गंभीर आरोपों से राहत पहुंचाने की कवायत कर रहे हैं प्रबंध निदेशक रणवीर सिंह चौहान|
स्पष्ट शासनदेशो को धता बता षडियंत्रकारी निति के तहत बिना जांच के आरोपी से ही उसका पक्ष रखवा शासन को अपनी रिपोर्ट भेजने जैसे कथन से स्पष्ट है की आरोपी को साज़िशन खुलेआम राहत पहुंचाने की कवायत कर रहे हैं प्रबंध निदेशक रणवीर सिंह चौहान

मुख्यमंत्री के विभागों में हो रहे खुले भ्रष्टाचार में से एक विभाग पेयजल निगम ने शासन द्वारा दिनांक 09/08/2024 को शिकायती पत्र के उपरांत मांगे गए शपथ पत्र एवं साक्ष्यों के बाद हरकत में आए शासन ने हर बिंदु पर जाँच आदेश के लिए प्रबंध निदेशक को पत्र भेजा, इ. संजय सिंह पर पूर्व में भी कई गंभीर आरोप लग चुके हैं। फिर भी लगातार संजय सिंह अपने पद पर बदस्तूर विराजमान हैं इनकी पकड़ शासन-सत्ता में काफी मजबूत है इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। निगम में यह चर्चा आम है कि प्रबंध निदेशक के सभी पत्रों को डिस्पैच संजय सिंह ही करते है | जिसे प्रबंध निदेशक द्वारा इसे सिरे से नकारते हुए कहा है कि उनके डाक वो अपने सामने ही खुलवाते है। साक्ष्यों सहित शिकायती पत्र पर 3 महीने तक कोई जाँच न होना अपने आप में इनका दबदबा और निगम में व्याप्त मजबूत भ्रष्टाचार का जीता जागता उदाहरण है। पेयजल निगम में शासन से मुख्य अभियंता मुख्यालय संजय सिंह की प्रत्येक बिंदु पर नियमानुसार जांच कर आख्या तत्काल देने के 10 अक्टूबर 2024 के आदेश एवं मुख्यमंत्री के विभाग पेयजल निगम में संजय सिंह अधीक्षण अभियंता /प्रभारी (मुख्य अभियंता मुख्यालय) के संबंध में शासन द्वारा प्रबंध निदेशक को प्राप्त शिकायत पत्र के प्रत्येक बिंदु की नियमानुसार निष्पक्ष एवं पारदर्शी प्रारंभिक जांच कर आख्या प्रत्येक दशा में 15 दिनो में शासन को उपलब्ध कराने के लिये कहा गया | लेकिन शासन आदेशों को धता बताते हुए प्रबंध निदेशक द्वारा लगभग 80 दिन में यानी 2 महीने में 10 दिन कम तक ना जांच कमेटी गठित की गई नाही कोई जांच की गई ।


31 दिसम्बर को पुनः शासन द्वारा अनुस्मारक पत्र( रिमाइंडर लेटर) भेजने के उपरांत लगभग 20 दिन बाद शासन के जांच करने के आदेश के रिमाइंडर को साफ-साफ धता बताते हुए प्रबंध निदेशक द्वारा इ. संजय सिंह से उनका पक्ष रखने को कहा गया। बिना जाँच के ही जिसके विरुद्ध प्रत्येक बिंदु के साक्ष्यों सहित शिकायत हैं वो ही बताएगा कि वो दोषी है या नहीं या यही तरीका हो चला है जाँच करने का प्रबंध निदेशक महोदय कमाल करते हुए शासन आदेश को मजाक बना, शासन इ. संजय सिंह द्वारा रखे गए उसके पक्ष पर अपनी रिपोर्ट बना शासन को भेज देंगे | इस कथन से स्पष्ट है कि बिना तथ्यों की जांच किए साक्ष्य सहित आरोपो को दरकिनार कर षड्यंत्रकारी नीति के तहत साजिशन खुले आम अभियंता को बिंदु बार गंभीर आरोपों से राहत पहुंचाने की कवायत कर रहे हैं प्रबंध निदेशक रणवीर सिंह चौहान|
हमारे द्वारा पत्र बना दिया गया है,संजय सिंह को अपना पक्ष एवं स्पष्टीकरण रखने को कहा गया है। उनका स्पष्टीकरण आने के उपरांत शासन को रिपोर्ट भेज दी जाएगी। आगे शासन तय करेगा।

इन सभी मामलों में एक ही चीज कॉमन है जो कि अपने आप में घूम फिर कर खुलल्म-खुल्ला जांच के नाम पर आरोपी को ही जांच सोपने से ही विभाग अध्यक्षों एवं उच्च अधिकारीयों एवं शासन के जांच आदेशों के सापेक्ष जांच के नाम पर अपनायी जाने वाली परिपाटी से बिना लाग लपेट के आरोपी एवं उच्च अधिकारीयों की मिली -भगत भरी भूमिका से स्पष्ट है कि सूबे में भ्रष्टाचार चर्म पर है| सबसे बड़ी समानता यह है इन चारो विभागों के विभाग अध्यक्ष मुख्य मंत्री की गुड बुक में स्थान प्रथम दस में बनायें हुये है| इससे प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री को सभी प्रकरणो पर गहनता से जांच करा निर्णय लेने होंगे नहीं तो वो दिन दूर नहीं यह उनके चहेते कहे जाने वाले नौकरशाह उनकी प्रदेश एवं संगठन एवं पार्टी हाई कमान में साफ सुथरी छवि को दारदार करने में कोई कोर कसर छोड़ने वाले नहीं है| इस महत्वपूर्ण कार्य में यें सभी एक ही परिपाटी अपना पूरी शिद्द्त से साथ लगे है| शायद जिससे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पूर्णतः अनभिज्ञ होंगे?
वन प्रभाग , देहरादून

प्रकरण जून 2022 वन विभाग के देहरादून वन प्रभाग का है। मांडूवाला में 45-50 बीघा भूमी पर प्लांटिंग कर्ताओं द्वारा किसानी चोला ओढ़ भाजपा के एक पूर्व पार्षद सचिन गुप्ता की मजबूत पैरवी पर क्षेत्रीय विधायक की विधायक निधि से आरक्षित वन में भू माफियाओ /अवैध प्लांटिंग कर्ताओ द्वारा की जाने वाली प्लाटिंग जिसकी पूरी तैयार रूप रेखा के तहत पूरी भूमी पर प्लांटिंग का व्यक्तिगत मानचित्र बना भूमी का समतली करण कर पास की नदी से ही खुले आम अवैध खनन कर पत्थर उठा कर उसका वन विभाग द्वारा स्टीमेट बनवा कर वन विभाग की देख – रेख में तुड़ान कर आरक्षित वन में पक्की सड़क बनाने की तत्कालीन प्रभागीय वन अधिकारी नितीश मणि त्रिपाठी द्वारा वन मंत्री की पैरवी पर एवं सांसद महोदय के लेटर पैड पर सांसद निधि देने की संस्तुति को ढाल बना जबकि क्षेत्रीय उप प्रभागीय वनाधिकारी (झाझरा रेंज ) की 24 जून 2022 की रिपोर्ट जिसमें साफ कहा गया



आरक्षित वन में पक्की सड़क बनाने का प्रविधान नही है। जैसी टिप्पणी को नजर अंदाज कर अवैध प्लाटिंगकर्ताओ को मोटा फायदा पहुंचाने की नियत से सब नियम कानूनों को ताक पर रख सड़क बनाने का पूरा ताना बाना बुन दिया गया। वीकली आई द्वारा प्रमुखता से खबर को छापा गया तब जाकर आनन फानन में रोड़ से पत्थर एवं पुलिया के लिए लाये गये पाईपो को हटाया गया। इस पूरे गंभीर प्रकरण एवं डीएफओ की हरकत को लेकर वन प्रमुख उत्तराखंड को पूरे साक्ष्यो सहित एक शिकायती पत्र सौंपा गया लगभग एक साल बाद भी पूरे गंभीर प्रकरण में डीएफओ की स्पष्ट संलिप्त की समस्त साक्ष्यो उपरांत भी जांच को अन्य दिशा में भटका लटकाया हुआ है। जो स्वयं में एक भ्रष्टाचार की और इशारा है
मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण

वैसे तो प्राधिकरण अपनी संदिग्ध कहे या स्पष्ट रूप में अवैध प्लाटिंग व अवैध निर्माणो एवं स्वीकृत मानचित्रो से भिन्न व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक भवनो का निर्माण क्षेत्रीय अधिकारीयों/ कर्मचारियों द्वारा प्राधिकरण में बैठे अन्य निजी तौर पर जेबें भरने के मुख्य संसाधन के रूप में प्रयोग में लाया जा राहा है. जिससे पूरे प्राधिकरण क्षेत्र में चालान शुदा इमारतो को क्षेत्रीय एवं प्राधिकरण में बैठे वाद को सुनने वाले अधिकारीयों से सेटिंग गैटिंग से सालों-साल ज़ब तक चालानशुदा निर्माण पूर्ण हो जाने तक, वाद को तारीख दर तारीख दे खींचा जाता है यही है। अवैध एवं स्वीकृत मानचित्र से भिन्न हजारों की संख्या में अशमनीय निर्माण भी प्राधिकरणीयों की जेब गर्म करने से खुलेआम सीना ठोक पूर्ण हो रहे है। वहीं पूरे प्राधिकरण क्षेत्र में सौ से अधिक चालान शुदा प्लांटिंग पूर्ण हो गयी है। सभी में प्राधिकरण के रहमो करम से भवन निर्माण भी हो गये है एवं खुलेआम क्षेत्रीय अभियंताओं के संरक्षण में 100 से अधिक शिकायती / चालान शुदा प्लाटिंगे पक्की सड़के बना प्लाटों के चिन्हीकरण कर धड़ल्ले से चल रही है। प्राधिकारणीयों के इस कृत्य से स्पष्ट है की प्राधिकरण पंगू व औचित्यहीन हो चुका है। इससे आम- जन एवं समस्त शासन- प्रशासन पूर्णतः परिचित है. ‘वीकली आई’ द्वारा समय-समय पर प्राधिकरण के इन कृत्यों को प्रमुखता से छापा जा जाता राहा है, जिसमें ‘प्राधिकरण में भ्रष्टाचार का उद्घघोष करते ए.ई, जे.ई, सुपर वाइजरो की खुले आम अवैध रकम वसूली’ की साक्ष्यो सहित खबर व शिकायत की गयी थी लेकिन दुर्भाग्यवश कोई पुख्ता कार्यवाही ना होने से वो सभी आज भी सीना ताने प्राधिकरण का तमगा पहन कहीं अवैध वसूली में लगे होंगे यें अपने आप में प्राधिकरण में व्याप्त भ्रष्टाचार का जीता-जागता उदाहरण है। वीकली आई में छपी खबरों के माध्यम से कार्यवाही तो दूर वसूली की चाल और भी बढ़ जाती है।

अधिकारीयों की संरक्षण में प्राधिकरण की नायाब कार्यशैली का नमूना ही है मै. देहरादून प्रीमीयर मोटर( महिंद्रा शोरूम) हरिद्वार रोड पर दो मंजिला इमारत का मानचित्र स्वीकृत था एवं बिना मानचित्र स्वीकृत कारयें 22 हजार 500 वर्गफुट चार मंजिला अधिक निर्माण को प्राधिकरण चालान में एवं प्राधिकरण में चल रही पूरी पत्रावली में ही आंशिक भिन्न निर्माण दर्शाया गया। भ्रामक दस्तावेज लगा शपथ पत्र सहित शमन मानचित्र स्वीकृति का आवेदन किया गया। जब वीकली आई द्वारा समस्त गलत दस्तावेजों से संबंधित खबरों को प्रमुखता से छापा एवं 29 अप्रैल 2024 को उपाध्यक्ष महोदय एवं 24 मई 2024 को अधीक्षण अभियंता महोदय को समस्त साक्ष्यों सहित पत्र द्वारा अवगत कराया गया। दिनांक 2 सितंबर 2022 में हुए चालन शुदा निर्माण में तब शपथ पत्र में अंकित पत्रावली में कोई भी त्रुटि पाए जाने पर आवेदित मानचित्र स्वयं निरस्त कर दिया जाए जैसी महत्वपूर्ण टिप्पणी को भी नजर अंदाज कर इसे एक विशेष प्रकरण मान उपाध्यक्ष महोदय के आदेशों के अंतर्गत एक कमेटी गठित की गई एवं कमेटी ने उपाध्यक्ष महोदय एवं पूरे प्राधिकरण के मन की सी पूर्वानुमानित शर्तिया रिपोर्ट के आधार पर पूर्णतः अवैध प्रक्रिया अपनाते हुए गलत तरीके से भवन स्वामी को फायदा पहुंचाते हुए अंततह भवन स्वामी के समक्ष निजी हितों के पूर्ण होने की स्थिति में नतमस्तक हो आवेदित मानचित्र से भी अधिक अशमनीय पूर्व निर्माण को संज्ञान होने उपरांत भी सभी नियमों को ताक पर रख लगभग पौने दो साल के ड्रामे के उपरांत मानचित्र स्वीकृत कर दिया गया. बार-बार प्राधिकरण को गलत कृतियों को चैताने के बाद भी कोई कार्यवाही न करने की स्थिति में दिनांक 3 अक्टूबर 2024 को प्राधिकरण अध्यक्ष को पत्र द्वारा सूचित किया गया एवं पत्र में स्पष्ट साक्ष्यों से सभी प्राधिकरणयों की स्पष्ट संलिप्ता का हवाला भी दिया गया एवं जांच किसी अन्य एजेंसी/विभाग से कराने का अनुरोध कारण सहित किया गया। लेकिन वही घिसी-पीटी पुरानी प्रणाली के अंतर्गत पूरे प्रकरण में संदिग्धों को ही फिर जांच दे दी गई। कोई बतायें कि इसमें निष्पक्ष जांच होने एवं दोषियों का दोष सिद्ध होने की संभावना हो सकती है यह भी सूबे में व्याप्त भ्रष्टाचार सशक्त उदाहरण है।
सूचना एवं लोक संपर्क विभाग ,देहरादून

प्रदेश में यूसीसी लागू करने वाले से देश का प्रथम राज्य का दर्जा हासिल कर वहावाही और पार्टी आला कमान द्वारा पीठ थपथपाने से प्रदेश एवं प्रदेश का सीना चौड़ा व सर गर्व से ऊंचा तो हुआ हैं। वहीं दूसरी और सूचना एवं लोक संपर्क विभाग में अपात्रों को बांटे गये विज्ञापनों से हुऐ करोड़ों अरबों के विज्ञापनों से सरकारी धन में प्रचार-प्रसार के नाम पर विज्ञापन भोगियों द्वारा झूठी प्रसार संख्या दर्शाकर जिसको की सूचना विभाग का कर्मचारी से ले कर महानिदेशक तक हर पद वास्तविक स्तिथि से बाखूबी वाकिफ था। फिर भी प्रदेश मुखिया के सर ठीकरा फोड़ते हुऐ एक ही जवाब कि माननीय मुख्यमंत्री के विवेकाअनुसार दिया गया, जिसका उन्हें पूर्ण अधिकार हैं। नियमावली से तो एक राह चलते इंसान से लेकर प्रदेश में मुखिया तक सभी बंधे है। मुखिया को गुमराह कर खुले आम धन लुटाई का कार्य जारी है। चहेतो को विज्ञापन रूपी धन का खुलेआम बेलगाम हो अपात्रों को लुटाया गया। आज भी यही प्रक्रिया बदस्तूर जारी है।

इस कड़ी में सूचना विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार का जीता- जागता उदाहरण है न्यूज़ हाइट नामक समाचार पत्र जिसकी सिर्फ फाइल कॉपी (15-25) मात्र ही छप रही थी जिसका कि आर.एन.आई. से पंजीकरण प्रमाणपत्र भी नहीं मिला था मुख्य्मंत्री के अनुमोदन के लिए भेजे जाने वाले पत्र में महानिदेशक सूचना को संबोधित करते हुए नियमो में शिथिलता बरतते हुए विज्ञापन जारी करने की लिखित में टिप्पणी ही अपने आप में विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार का उदहारण है । सरकार का यह भय मुक्त प्रदेश में जहां आम आदमी हर महकमे विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण इसे पूर्णतः इस प्रक्रिया का आदि हो चुका हो, आम-जन कितना भय मुक्त है प्रदेश में इसका आंकलन तो अभी तक जमीनी स्तर पर हुआ ही नहीं है। प्रदेश के विभागों में हो रहे भ्रष्टाचार एवं भ्रष्टाचार सबूतों के बाद भी संलिप्त अधिकारी कर्मचारी जरूर भय मुक्त है। सामने आने पर प्रभावी कार्यवाही न होने से प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार से सरकार की साख को बट्टा लगाते है विभागीय भ्रष्टाचारी।
