- लोक आस्था के महापर्व छठ का चार दिनी अनुष्ठान इस साल 25 नहाय-खाय के साथ हुआ था शुरू
- यूपी, बिहार, झारखंड पश्चिम बंगाल, दिल्ली समेत देश-विदेश में है इस महापर्व की पहुंच
अभयानंद शुक्ल, वीकली आई न्यूज़
लखनऊ। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, दिल्ली समेत लगभग पूरे भारत और विदेशों में धूम मचाने वाला और श्रद्धा के साथ मनाया जाने वाला छठ महापर्व मंगलवार की सुबह उगते सूर्य के साथ पूर्ण हो जाएगा। 25 अक्टूबर को खरना और नहाय-खाय और 27 अक्टूबर की शाम डूबते हुए सूर्य की पूजा से चल रहा ये व्रत बहुत कठिन माना जाता है। इस व्रत में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। देवी दुर्गा के छठवें रूप कात्यायनी की पूजा के लिए प्रसिद्ध इस देवी को छठी मैया भी कहा जाता है। इस समय यह व्रत राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति का साधन भी हो गया है। सभी राजनीतिक दलों में इस बात की होड़ लगी रहती है कि कौन कितना छठ व्रतियों के लिए अधिक से अधिक सुविधा जुटाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर ले। चूंकि इस समय बिहार में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं, इस लिहाज से जिसको जहां भी मिल रहा है बिहारी लोगों को खुश करने के लिए इस पूजा की व्यवस्था में लगा हुआ है।
देश की राजधानी दिल्ली में जहां यमुना को लगभग साफ करके दिल्ली में बसे बिहारियों का दिल जीतने के लिए रेखा गुप्ता सरकार ने बृहद इंतजाम किए हैं। वही खबरों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 28 तारीख की सुबह उगने सूर्य को अर्घ्य देने के लिए जाएंगे। इस पूजा के जरिए वे बिहार के लोगों को एक राजनीतिक संदेश भी देंगे। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बृहद तैयारियां की गई हैं। यहां के लक्ष्मण मेला मैदान में गोमती किनारे योगी सरकार ने साफ सफाई की अच्छी व्यवस्था की है। पूर्वांचल के लोगो और संगठनों के सहयोग से गोमती किनारे भव्य व्यवस्था की गई है। यहां पर छठ मैया के गीतों के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होने हैं। यह सीधे-सीधे बिहार की राजनीति को प्रभावित करने की मंशा से किया जा रहा है।
छठ महापर्व की बात करें तो 26 अक्टूबर, रविवार को खरना किया गया। इस दिन से व्रत की पवित्रता शुरू हो गई। इस दिन छठ व्रती पूरी निष्ठा से छठी मइया को खीर का प्रसाद बनाकर भोग लगाते हैं। यह प्रसाद घर-परिवार और पास-पड़ोस को भी ग्रहण कराने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि खरना का प्रसाद ग्रहण करने से जीवन के सारे दूख दूर होते हैं, और छठी मइया व्रती की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। इसके बाद 27 अक्टूबर सोमवार को अस्ताचलगामी भगवान भाष्कर को संध्याकालीन अर्घ्य अर्पण किया गया। यही एक ऐसा पर्व है जिसमें डूबते सूर्य की भी पूजा की जाती है। इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर छठ व्रती परिवार की सुख-समृद्धि और संतति वृद्धि की कामना आदित्य देव से करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ढलते सूरज को जल चढ़ाने से भगवान दिनकर छठ व्रती को भर-भरकर आशीष देते हैं।
इसके बाद कल मंगलवार को 28 अक्टूबर को उगते सूर्य को प्रात:कालीन अर्घ्य दिया जाना है। इस दिन सूर्य के उगते स्वरूप का दर्शन कर छठ व्रती खुशहाली की कामना करती हैं। इस दिन परिवार के लोग भी छठ व्रती को सामने से दूध-जल का अर्घ्य अपर्ण कर अपनी निष्ठा प्रकट करते हैं।
इस दौरान छठी मइया से मंगल कामनाएं की जाती हैं। छठ पूजा का प्रसाद छठ घाट पर ही ग्रहण करने का विधान है। अंतिम चरण में छठ व्रती पारण कर अपने चार दिवसीय छठ पर्व का अनुष्ठान समाप्त करते हैं। इस साल इस महापर्व का पारण 28 अक्टूबर मंगलवार को है।
यह महापर्व इस समय भारत की सीमा लांघ कर विदेशों में भी फैल गया है। विदेश में रहने वाले भारतीय भी परंपरा के अनुसार अपने-अपने देश में इस व्रत को करते हैं। वहां की स्थानीय सरकारें भी इस व्रत की व्यवस्था में पूरे तन मन से लगती हैं। और यह कह सकते हैं कि यह व्रत पूरे विश्व को भारत से जोड़ने का और भारत की परंपरा को जीवित करने का एक उदाहरण बना हुआ है।
