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Reading: शास्त्री जी: साठ साल बाद भी मौत का रहस्य बरकरार
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शास्त्री जी: साठ साल बाद भी मौत का रहस्य बरकरार

News Desk
Last updated: 2025/10/02 at 3:44 PM
News Desk
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11 Min Read
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  • लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिन पर विशेष
  • दो अक्तूबर को शास्त्री जी ने भी जन्म लिया
  • अभी अनसुलझे हैं पूर्व पीएम की म‌त्यु के राज

पीयूष त्रिपाठी, वीकली आई न्यूज़

लखनऊ। इकहरा बदन, छोटा कद लेकिन इरादे फौलाद। उन्होंने नारा दिया “जय जवान -जय किसान” और उनकी एक आवाज पर तमाम देशवासियों ने सप्ताह में एक दिन एक समय उपवास करना शुरू कर दिया। हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री दिवंगत लाल बहादुर शास्त्री का जन्मदिन भी दो अक्टूबर को ही होता है।
शास्त्री जी वह नेता थे जिनके नेतृत्व में देश की फौज ने दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए थे। सादगी और सौम्यता की मिसाल लाल बहादुर शास्त्री का जन्म दो अक्तूबर 1904 को मुगलसराय में हुआ था। उन्होंने बचपन में ही अपने पिता को खो दिया था जिससे उनका बचपन काफी कष्ट में बीता। शास्त्री जी को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए भी बहुत संघर्ष करना पड़ा लेकिन मेहनत और लगन के बूते वह देश के प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे और इन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस भी देश हित में काम करते हुए ही ली। लेकिन इनकी मौत का रहस्य आज तक नहीं खुल पाया।
जन्मदिन के अवसर पर हम शास्त्री जी के जीवन से जुड़े तमाम पहलुओं पर चर्चा करेंगे। बात अगर उनके बचपन की करें तो शास्त्री जी का बचपन का नाम नन्हे था। उनके बचपन का यह किस्सा उल्लेखनीय है कि बालक नन्हे को नदी को नाव से पार करके स्कूल जाना पड़ता था और जब उनके पास नाव वाले को देने के लिए पैसे नहीं होते थे तो वह एक हाथ में किताबें थामकर दूसरे हाथ से पानी में रास्ता बनाते हुए गंगा नदी को पार करके स्कूल जाते थे और वापसी में भी ऐसे ही लौटते थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि उनके अंदर पढ़ने और कुछ करने की लगन थी। बालक नन्हें को पता था कि उसके सिर पर पिता का साया नहीं है और उसकी मां कितनी तकलीफों से उसे पाल रही हैं। शास्त्री जी के पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव का निधन हो जाने के बाद घर की जिम्मेदारी उनकी मां रामदुलारी ने उठाई। शास्त्री जी बहुत मेधावी थे इसलिए उन्हें छात्रवृत्ति के रूप में तीन रुपए मिलते थे।
शास्त्री जी के जीवन की एक और कहानी मशहूर है। उनके स्कूल से घर के रास्ते में एक बाग पड़ता था जहां तमाम फलों और फूलों के पेड़ थे। शास्त्री जी के दोस्त वहां से फल और फूल तोड़ते थे । एक बार जब उनके साथी फल तोड़ रहे थे तो अचानक बाग का माली आ गया । बाकी लड़के तो भाग गये लेकिन माली ने शास्त्री जी को पकड़ लिया और उन्हें एक तमाचा मारा। शास्त्री जी ने रोते हुए कहा कि मेरे पिताजी नहीं हैं इसलिए तुम मुझे मार रहे हो । तब माली ने उन्हें एक तमाचा और मारते हुए कहा कि जब तुम्हारे पिताजी नहीं हैं तब तो तुम्हें ऐसी गलती बिलकुल भी नहीं करनी चाहिए और ईमानदार इंसान बनना चाहिए ।
बालक लाल बहादुर के मन पर माली की बातों का ऐसा असर हुआ कि वह लगन के साथ पढ़ाई में जुट गये और 1926 में काशी विद्यापीठ से स्नातक किया और उन्हें शास्त्री की उपाधि मिली ।
पढ़ाई के साथ-साथ शास्त्री जी के अंदर देश सेवा का भी जज्बा था । महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित होकर शास्त्री जी स्वतंत्रता आंदोलन में उस समय कूद पड़े जब वह दसवीं कक्षा के छात्र थे । 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण शास्त्री जी को जेल भी जाना पड़ा ।
लाल बहादुर शास्त्री का विवाह मिर्जापुर की ललिता देवी के साथ हुआ था। शास्त्री जी के पुत्र हरिकृष्ण शास्त्री , सुनील शास्त्री और अनिल शास्त्री भी राजनीति में रहे ।
देश की आजादी के बाद शास्त्री जी उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव बने और बाद में परिवहन मंत्री भी बनाए गये। 1952 में देश के पहले आम चुनाव के बाद केन्द्र में बनी जवाहरलाल नेहरू की सरकार में शास्त्री जी को देश का प्रथम रेल व परिवहन मंत्री बनाया गया। 1959 में शास्त्री जी को वाणिज्य और उद्योग मंत्री बनाया गया और 1961 में लालबहादुर शास्त्री गृह मंत्री बनाए गये। लाल बहादुर शास्त्री सरल और सौम्य थे लेकिन कार्यशैली में आदर्श और नैतिकता को लेकर अत्यंत सख्त।‌जब वे रेलमंत्री थे तो एक रेल दुर्घटना हुई जिसमें तमाम लोग मारे गये। उन्होंने दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। उस समय इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने संसद में कहा था कि मैंने शास्त्री जी का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया कि वह इस हादसे के लिए जिम्मेदार हैं बल्कि इसलिए स्वीकार किया क्योंकि इससे संवैधानिक मर्यादा की मिसाल कायम होगी।
शास्त्री जी की साफ सुथरी छवि के कारण ही उन्हें पंडित नेहरू के निधन के बाद देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। वे 11 जून 1964 को भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रथम संवाददाता सम्मेलन में शास्त्री जी ने कहा था कि उनकी शीर्ष प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढ़ने से रोकना है। उस समय देश में खाद्यान्न संकट बढ़ने पर उन्होंने देशवासियों से सप्ताह में एक समय का भोजन छोड़ने की अपील की थी।‌ दरअसल भारत से युद्ध में पाकिस्तान कमजोर पड़ने लगा तो उसने अमेरिका से हस्तक्षेप की गुहार लगाई। तब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने शास्त्री जी को धमकी दी कि अगर आपने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई बंद नहीं की तो हम आपको जो लाल गेंहूं भेजते हैं, उसकी सप्लाई बंद कर देंगे। उस समय भारत में गेंहूं का उत्पादन बहुत अधिक नहीं था और अमेरिका से लाल गेहूं आया करता था। हालांकि वह गेहूं भी गुणवत्ता में उन्नीस ही था।
स्वाभिमानी शास्त्री जी को यह बात चुभ गई और उन्होंने देश में उपजे खाद्यान्न संकट से निपटने के लिए देशवासियों से एक समय का खाना छोड़ने की अपील की और लोगों ने भी शास्त्री जी की अपील को सिर माथे लिया और तमाम लोगों ने एक समय उपवास करना शुरू कर दिया । ये था साल 1965। जब पाकिस्तान ने अचानक भारत पर हमला कर दिया था। राष्ट्रपति द्वारा बुलाई गई आपात बैठक में जब तीनों सेना अध्यक्षों ने प्रधानमंत्री शास्त्री से पूछा कि सर क्या हुक्म है तो शास्त्री जी ने कहा कि आप देश की रक्षा कीजिए और मुझे बताइए कि क्या करना है। इस युद्द में भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान के दांत खट्टे कर दिए। पूरे देश में शास्त्री जी के नेतृत्व की प्रशंसा होने लगी। लड़ाई बंद होने के बाद शास्त्री जी ने राष्ट्र के नाम संदेश में पाकिस्तान को चेतावनी दी कि यदि दोबारा कश्मीर या किसी भी हिस्से पर हमला करने की कोशिश होगी तो हम भी उचित जवाब देंगे।
इस युद्ध के बाद ही शास्त्री जी ने जय जवान–जय किसान का नारा दिया था। शास्त्री जी ने देश को युद्ध में तो विजय दिला दी लेकिन इस युद्ध के बाद जो कथित षड्यंत्र शास्त्री जी के विरुद्ध रचा गया उसमें वे पराजित हो गए। असल में युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए अमेरिका और रूस ने शास्त्री जी पर बहुत दबाव बनाया और किसी तरह उन्हें समझा बुझा कर रूस के ताशकंद बुला लिया । समझौता वार्ता में शास्त्री जी ने साफ कह दिया था कि वह जीती हुई जमीन हरगिज नहीं लौटाएंगे। पर काफी जद्दोजहद के बाद दबाव बनाकर शास्त्री जी से ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करा लिए गये ।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के साथ ताशंकद समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही घंटे बाद ही उनकी 11 जनवरी 1966 की रात मृत्यु हो गई । उससे पहले शास्त्री जी रूसी राष्ट्रपति द्वारा दिए गए भोज में भी शामिल हुए थे। वहां से लौट कर वह उस स्थान पर आए जहां वह ठहरे हुए थे। सुबह ही उन्हें वहां से वापस लौटना था। रात को अपने कमरे में पहुंचने के बाद ही उन्हें बेचैनी और सीने में दर्द महसूस हुआ। जब तक डॉक्टर आए उनकी हालत बिगड़ चुकी थी और उन्होंने दम तोड़ दिया। उनकी
मृत्यु की वजह हृदयाघात को बताया गया, हांलाकि उनके परिवार ने कभी इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया। परिवार का आरोप है कि शास्त्री जी को जहर दिया गया। कहा जाता है कि यह जहर उन्हें दूध के जरिए दिया गया। यह भी आरोप लगाया गया कि उनके शव का पोस्टमार्टम भी नहीं कराया गया और उनकी मृत्यु से संबंधित रिकार्ड भी गायब कर दिए गये । सोशलिस्ट नेता राजनारायण ने जनता सरकार के दौरान उनकी मृत्यु के कारणों की जांच कराई लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला। शास्त्री जी की मौत की वजह आज भी संदेह के घेरे में है। यह साजिश किसने रची इसका खुलासा तो आज तक नहीं हुआ लेकिन ऐसा माना जाता है कि शास्त्री जी के जाने से जिसे राजनीतिक रूप से सबसे अधिक फायदा हुआ शायद वही समूह या व्यक्ति इस साज़िश के पीछे रहा हो। उनकी मौत की वजह साठ साल के बाद भी एक रहस्य ही है जिससे पर्दा नहीं उठ सका है। धरती के इस लाल को नमन।

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News Desk October 2, 2025 October 2, 2025
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