- इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने जारी किया आदेश
- प्रदेश में अब प्रथम सूचना रिपोर्ट और चार्ज शीट में भी जाति का जिक्र नहीं किया जाएगा
वीकली आई न्यूज़, अभयानंद शुक्ल
लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद हरकत में आई उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में जातीय रैलियों और प्रदर्शनों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। इसके अलावा प्रदेश में दर्ज किए जाने वाले प्रथम सूचना रिपोर्ट और चार्ज शीट में भी जाति का जिक्र नहीं किया जाएगा। इस संबंध में सूबे के कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने आदेश जारी कर दिया है।
इसके पहले 16 सितंबर को अपने एक फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को इस बाबत एक बड़ा और दूरगामी असर वाला आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था पुलिस रिकॉर्ड और प्रथम सूचना रिपोर्ट में जाति का उल्लेख तत्काल समाप्त कर दिया जाए। कोर्ट का मानना है कि ये संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ है। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने सरकार को प्रथम सूचना रिपोर्ट के प्रोफार्मा में बदलाव का निर्देश भी दिया था। कोर्ट ने जातीय महिमा मंडन पर भी कड़ी आपत्ति जताई थी और सार्वजनिक साइन बोर्ड से भी जातिगत संदर्भ हटाने के निर्देश दिए थे। कोर्ट का मानना है कि ऐसे जातिगत महिमा मंडन राष्ट्र-विरोधी हैं।
हाईकोर्ट ने इसके अलावा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर से जाति का महिमा मंडन करने वाली सामग्री तुरंत हटाने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट ने शराब तस्करी से जुड़े एक मामले को रद्द करने की याचिका खारिज करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को उक्त ऐतिहासिक निर्देश जारी किया है। न्यायमूर्ति ने विस्तृत फैसले में इस प्रथा को कानूनी भ्रांति और पहचान की प्रोफाइलिंग बताया है, जो संवैधानिक नैतिकता कमजोर करती है। कोर्ट ने इसे भारत के संवैधानिक लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती भी बताया है। कोर्ट ने बीते 16 सितंबर को ये आदेश दिया।
हाईकोर्ट ने इस महत्वपूर्ण फैसले में उत्तर प्रदेश सरकार को अपनी पुलिस दस्तावेज़ी प्रक्रियाओं में व्यापक बदलाव करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट के फैसले में इस प्रथा के लिए पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) द्वारा दिए गए तर्कों की भारी आलोचना की गई है और जाति पर आधारित पहचान से होने वाले मनोवैज्ञानिक और सामाजिक नुकसान पर दूरगामी टिप्पणियां की गई हैं।
अपने फैसले में हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि 2047 तक एक विकसित राष्ट्र के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए, जाति का विनाश हमारे राष्ट्रीय एजेंडे का एक केंद्रीय हिस्सा होना चाहिए। कोर्ट ने आदेश की कापी रजिस्ट्रार को अनुपालन और सूचना के लिए राज्य-,केंद्र सरकारों के शीर्ष अधिकारियों को प्रेषित करने का भी निर्देश दिया था। इस आदेश के अनुपालन मे प्रदेश सरकार ने ये आदेश जारी किया है।
सरकार द्वारा आदेश जारी करने के बाद इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है। समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा है कि जाति पूछने की प्रथा इस देश में कब तक चलेगी, छोटी जातियों के लोगों के घर से जाने के बाद घर धुलवाने की प्रथा कब समाप्त होगी। इस दिशा में भी कुछ काम होना चाहिए। उन्होंने पूछा है कि राजनीति में जातिगत भेदभाव की सोच का अंत कब तक होगा।
हाईकोर्ट ने पुलिस रिकॉर्ड में जाति पर लगाई थी फटकार
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि अभियुक्त की जाति का उल्लेख पुलिस रिकॉर्ड में किया गया था। कोर्ट ने प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को इस प्रथा पर व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था। डीजीपी के हलफनामे में तीन मुख्य कारण बताए थे। पहला, अभियुक्त की पहचान में किसी भी भ्रम से बचने के लिए, दूसरा अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम के तहत डिजाइन किए गए फॉर्मों में कॉलम की अनिवार्यता, और तीसरा एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामलों में जाति दर्ज करने की आवश्यकता होना बताया। पर हाईकोर्ट ने इन तर्कों को खारिज कर दिया।
